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खास मुलाकात : दिल्ली के उपमुख्यमंत्री सिसोदिया ने कहा- बेघर बच्चों को सुधार गृह नहीं स्कूल भेजेगी सरकार

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दिल्ली बजट का पिटारा खुल गया है। सरकार इसे दिल्ली के विकास की कार्ययोजना बता रही है। इसके जरिये सरकार सभी लोगों की जिंदगी में भी बदलाव लाना चाहती है। उनकी भी, जो केंद्र में खड़े हैं या हाशिये पर हैं। सरकार के सीमित संसाधन के बाद भी। जनता की जेब ढीली किए बगैर सरकार की आय भी बढ़ेगी। कारोबारियों को कमाई और लोगों को नौकरी भी। यह कब तक और कैसे होगा? इस बारे में बजट के योजनाकार व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से अमर उजाला संवाददाता संतोष कुमार ने विस्तार से बात की। पेश हैं प्रमुख अंश…

बेघर बच्चों के लिए बोर्डिंग का आइडिया कहां से आया?
सड़कों, चौक-चौराहों से गुजरते वक्त भीख मांगते बच्चों को देखकर बहुत पीड़ा होती है। जिनको स्कूल में होना चाहिए, वह सड़क पर हैं। बेहद दुखद तस्वीर अंदर तक चुभती है। कई बार सोचा कि क्या किया जाए। पुरानी योजनाएं देखता हूं तो इसमें जोर बच्चों के सुधार पर है। सड़क से हटाकर इनको सुधार गृह भेज दिया जाता है। लेकिन दो-चार साल बाद वह वहां से निकल फिर पुरानी जिंदगी में लौट जाते हैं। यह ठीक नहीं है। काफी सोच बिचार कर इन बच्चों के लिए बोर्डिंग स्कूल की योजना बनाई। सुधार गृह की जगह अब इनको स्कूल भेजना है। दिल्ली सरकार इनके परिवार की भूमिका में होगी। हर स्तर पर इन बच्चों का ख्याल रखा जाएगा। स्कूल में इनको अत्याधुनिक सुविधाएं मिलेंगी। पढ़ाई का स्तर भी उच्च रखा जाएगा। इससे स्कूल से बाहर वह जिम्मेदार नागरिक बनकर निकलेंगे।

राजधानी में इस तरह के बच्चों की कितनी तादाद होगी?
इस पर कई सारे अध्ययन हैं। सरकार ने भी इस पर काम किया है। सवाल संख्या का है भी नहीं। इस तरह के सभी बच्चों को स्कूल भेजना है। आने वाले वर्षों में कोई बच्चा सड़क पर नहीं होगा। सरकार का यही मकसद है। इसे संजीदगी से पूरा करेंगे।

बजट में तो सिर्फ 10 करोड़ रुपये प्रावधान किया है?
इस काम में बजट की अड़चन नहीं है। अभी हम शुरुआत कर रहे हैं। आगे जरूरत के हिसाब से इसका विस्तार किया जाएगा। इसमें बच्चों की काउंसलिंग से लेकर उनके रहने, खाने-पीने, दवा समेत सभी जरूरतों को पूरा किया जाएगा। अभी जगह तय नहीं है। इस पर काम चल रहा है। कोशिश यही है कि एक साल में भीतर स्कूल मूर्त रूप ले ले। मिले अनुभवों के आधार पर इसका विस्तार किया जाएगा।

लगातार आठवीं बार शिक्षा पर सबसे ज्यादा आवंटन है। अभी कुछ कमी बची है क्या?
अभी तक हमने शिक्षा की बुनियाद बेहतर करने का काम किया है। स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में बदलाव लाया गया है। अब आगे इस पर मजबूत इमारत खड़ी है। इसके लिए बहुत सारे काम हो रहे हैं। अभी साइंस सेंटर का भी जिक्र किया है। बोर्डिंग स्कूल वाली बात है ही। इस सबसे शिक्षित समाज और समर्थ राष्ट्र का हमारा सपना पूरा होगा।


बजट में साहिबी नदी का जिक्र किया। दिल्ली ने भी इसे भुला दिया है। अचानक यह कैसे ध्यान में आ गई?
यह अचानक नहीं हुआ। जब हम यमुना नदी का निर्मल करने की बात करते हैं तो साहिबी को याद करना ही पड़ेगा। आज यह नजफगढ़ नाले के नाम से जानी जाती है। इसी से सबसे ज्यादा सीवेज यमुना में गिरता है। इस नदी को उसके पुराने स्वरूप में लौटाए बिना यमुना का साफ करना संभव नहीं है। चूंकि मुख्यमंत्री के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के तौर पर 2024 तक यमुना को निर्मल करना है तो साहिबी पर भी काम करना पड़ेगा। इसलिए बजट में इसका जिक्र किया गया।

नदी को कैसे साफ करेंगे?  
नजफगढ़ नाले पर दिल्ली का अपना सीवर लोड है ही, हरियाणा का फ्लो भी इसमें आता है। इन-सीटू की मदद से दिल्ली में इसे साफ किया जाएगा। अब किसी भी नाले का पानी सीधे नजफगढ़ ड्रेन में नहीं गिरेगा। उसको शोधित किया जाएगा। साथ ही जरूरत के हिसाब से इसके प्रवाह में भी बदलाव होगा। साथ ही इसके ड्रेन के दोनों ओर सौंदर्यीकरण किया जाएगा। इसे लेकर काफी काम हो चुका है। पूरी योजना तैयार है। इस दिशा में काम शुरू भी हो गया है।

इस बार जल बोर्ड का बजट दोगुना करने की क्या वजह रही?
यमुना नदी तो है ही। सरकार का एक और महत्वाकांक्षी लक्ष्य हर घर को 24 घंटे तक पेयजल पहुंचाना है। दिल्ली सरकार का लक्ष्य हासिल करने में तेजी से आगे बढ़ रही है। इसके लिए बजट की जरूरत पड़ेगी। इसी वजह से बजट बढ़ाना पड़ा है।

सीमित आय के साधन सीमित होने के बाद भी आपके आठवें बजट का आकार ढाई गुना हो गया। यह कैसे संभव हो रहा है?
बात ठीक है। दिल्ली में आय की स्रोत सीमित हैं। केंद्र सरकार भी हमें केंद्रीय करों में से ज्यादा कुछ नहीं देती। 2015 में जब पहला अपना पहला बजट तैयार कर रहे थे, तो यह बड़ी चुनौती थी। उस समय का बजट 31,000 करोड़ रुपये का था। उससे पहले की सरकार हर साल अपना बजट 1,000-1,200 करोड़ बढ़ा पाती थी। हमें चिंता थी कि बजट से किस तरह जन आकांक्षाओं को पूरा किया जा सकेगा। लेकिन अच्छी बात यह हुई है कि उस वक्त मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के व्यापारियों से बातचीत की। कई दौर की बैठकें हुई। उसमें समझ में आया कि वह कर तो देना चाहते हैं। बस भरोसा हो जाए कि सरकार ईमानदारी से काम कर रही है। हमने इमानदारी से काम करना शुरू किया। लोगों ने कर देना भी शुरू किया। इमानदारी की सबसे अधिक जरूरत कर वसूलने में है। कर वसूलने में जनता  का पैसा बहुत चोरी हो रहा है। इस सब पर रोक लगने से आय बढ़ती गई। और आठ साल में ही बजट का आकार ढाई गुना  ज्यादा हो गया है।

सरकारी राजस्व पर कोविड काल में भी चुनौती आई होगी?
स्वाभाविक है, लेकिन दिल्ली सरकार ने लोगों के हाथ में पैसा देने की योजनाओं पर कैंची नहीं चलाई। चाहे यह सब्सिडी से उनके पास जा रहा हो या न्यूनतम मजदूरी से। देश में सबसे ज्यादा न्यूनतम मजदूरी दिल्ली में है। जब आम लोगों के हाथों में पैसा होगा तो वह वह बाजारों में पहुंचेगा। इससे सकल घरेलू उत्पाद बढ़ेगा और सरकार की आय भी।

सीमित आय के बीच महत्वाकांक्षी योजनाएं, बजट आड़े तो नहीं आएगा?
हमने बहुत सोच-समझकर योजनाएं बनाई हैं। हमारी टीम ने दिल्ली के व्यापारियों के साथ करीब 150 बैठकें की हैं। रिसर्च टीम अलग से काम कर रही थी। इन सबके इनपुट के आधार पर काफी व्यावहारिक बजट तैयार किया है।

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